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बिहार चुनावों से उपजी चिंता

Bas Yun Hi
Bas Yun Hi
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मेरे मित्र राघवेन्द्र जी हमें अभी भी गरिया रहे थे, “अबे तुम किसी बात से खुश नहीं होते क्या? बिहार में लोकतंत्र की जीत हुई है, नई सरकार बनने वाली है और चुनाव में बिहार के सबसे साफ़ सुथरे नेता को चुना गया है और तुम हो की अभी भी मुंह लटकाए बैठे हो?”

मैं राघवेन्द्र जी की इन तमाम बातों से सहमत होते हुए भी बिहार के नतीजों से खुश नहीं हूँ| यह सच है कि इस बार के चुनावों में एक बड़े वर्ग को सबसे ज्यादा खुशी इसी बात की है कि अमित शाह और मोदी परास्त हुए हैं| किसी एक पार्टी का समर्थक होता तो मेरे उदगार ज्यादा स्पष्ट होते पर मेरी चिंता के केंद्र में बिहार का जन सामान्य ही है|

भाजपा ने पिछले चुनाव के मुकाबले सात प्रतिशत अधिक वोट प्राप्त किए है और फिर भी बुरी तरह पराजित हो गयी है | दूसरी ओर राष्ट्रीय जनता दल ने एक प्रतिशत कम वोट और जनता दल युनाइटेड ने छः प्रतिशत कम वोट के बावजूद मिलकर डंका बजा दिया है | क्या लोकतंत्र के लिए यह अच्छी बात है ? ज्यादा लोग जिसे चाहे फिर भी वह सरकार न बना पाए – क्यों ? दरअसल भाजपा सभी विषयों में अच्छे अंक पाने की बावजूद (गठबंधन के) गणित में फेल हो गयी है (और यह भाजपा के साथ कई बार पहले भी हुआ है)|

थोड़ा ठहरते हैं और मूल बात पर विचार करते हैं – बिहार में चुनाव हो किस लिए रहे थे? सुशासन देने और विकास कराने वाली एक सरकार को चुनने के लिए – यह स्पष्ट मत है| प्रचार की भाषा में देखे तो लगेगा कि ऐसा ही हुआ है लेकिन शायद ऐसा है नहीं|

विजयी गठबंधन की बात करते हैं – यह निर्विवाद सत्य है कि इन चुनावों में मुख्यमंत्री पद के लिए नितीश से ज्यादा अच्छा नेता और कोई नहीं था और अब प्रदेश की बागडोर उन्हीं के हाथ में रहेगी| ज़रा ठहरिये – क्या बागडोर वास्तव में नितीश के हाथ में रहेगी? तो फिर लालू एंड सन्स क्या किनारे बैठ कर तमाशा देखेंगे? लालू बखूबी जानते हैं कि अपने परिवार की नई पीढी को स्थापित करने का ऐसा सुनहरा मौक़ा दोबारा नहीं मिलेगा और इसके लिए वह कोई कसर नहीं उठा रखेंगे| नितीश से ज्यादा सीटें लेकर बैठने के बाद लालू एंड संस तटस्थ रहेंगे ऐसा सोचना भी शायर का ख़्वाब जैसी बात है| बड़े दिनों बाद मिली छोटी सी खुशी के सहारे कांग्रेस भी राज्य सरकार को अपने हिसाब से चलाने में पीछे नहीं रहेगी|

दूसरी और भाजपा सरकार और दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार के समीकरण देखने के बाद यह गलतफहमी नहीं होनी चाहिए कि बिहार को अभी भी मोदी जी से सवा लाख करोड़ का विशेष पैकेज मिलेगा| विशेष पैकेज को छोडिये, केंद्र से वाजिब सहायता भी बमुश्किल ही मिलेगी| नितीश बाबू, इंश्योरंस कम्पनियों के कागजों की तरह छोटे अक्षरों में लिखी महीन शर्तें पढ़ने की आदत जितनी जल्दी दाल लें तो अच्छा |

तो कुल मिला कर नितीश कुमार जी की स्थिति कुछ ऐसी है कि कंधे पर लालू एंड संस विराजमान रहेंगे और की केंद्र सरकार से सहयोग तुअर दाल की तरह महंगा मिलेगा| ऐसे में नितीश कुमार बिहार की जनता का कितना भला कर पाएंगे – और यही मेरी और बिहार की जनता की चिंता है|

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